Wednesday, January 28, 2009

First trial 31jan09


कहानी शुरू होती है १९२४ में भारत के एक राज्य मध्यप्रदेश के एक जिले नरसिहपुर से, [http://wikimapia.org/#lat=22.9497786&lon=79.1938305&z=14&l=0&m=a&v=२] जहाँ एक छोटे से गाँव बोहनी-कुन्दुआखेडा में मेरे दादा जी स्वर्गीय श्री कुंजीलाल वर्मा (१९२४- २७ दिस. १९९३) का जन्म हुआ . मेरे दादा जी के ७ भाई और ३ बहने है | मेरे दादा जी मंझले थे भाइयो में , पर उनके बड़े भाई का अकस्मात् निधन हो जाने से दादाजी ही परिवार में सबसे बड़े हैं | अब यहाँ पर एक शाखा यह जुड़ती है की मेरे दादाजी को उनकी बुआ जी ने गोद ले लिया था, क्यों की उनकी अपनी कोई संतान नही थी, तो इस तरह दादाजी कुन्दुआखेडा से ३० किलोमीटर दूर राजमार्ग - लोलरी गाँव पहुँच गए | पर जनम स्थान और भाई बहनों से हमेशा संपर्क में रहे, और आज जब वो नही है तब भी हम सब एक ही परिवार का हिस्सा है |



अब मेरे दादाजी पढ़ लिख कर बड़े हो गए है और जैसा की पुश्तेनी जायजाद मिलती है वैसे ही पुश्तेनी पेशा उन्हें वसीयत में मिला और वो पटवारी बन गए | १९४७ में उनकी शादी मेरी दादी स्वर्गीय श्री मति तुलसा बाई से हुई | दादी जी पास ही एक गाँव डोभी की थी जो की दादाजी के गाँव से १५ किलोमीटर के दूरी पर है | उनकी बारात बैल गाड़ी से आई थी, जैसा की उस ज़माने में होता होगा | फिर २१ जुलाई १९४८ को मेरे पिताजी श्री शिव नंदन वर्मा जी का जनम हुआ | पापा जी के ४ भाई और ४ बहने है |
पापा जी का बचपन लोलरी और उसके पास करेली तक ही पढ़ते लिखते गुजरा, बाद में वे कुछ समय पड़ने के लिए अपने चाचा जी के साथ भोपाल में भी रहे और अपना ग्रेजुअशन (बी कॉम ) किया | पापा जी को गाने का बहुत शोक था और उन्हें आकाशवाणी में काम करने का मोका भी मिला, पर अपनी दादी के लाडले होने के कारन उन्होंने पापा जी को जॉब करने की इजाजत नही दी | बाद में पापा जी ने ७० की शुरुवात में मध्य प्रदेश विद्युत् मंडल में अच्कोउन्ट्स डिपार्टमेन्ट में काम शुरू किया और बीना, केमोरे के बाद चचाई में रहे |
चचाई में ही रहते हुए पापा जी अपने दो छोटे भाइयो को भी अपने ही साथ काम पर लगवा लिया | फिर १९७६ में पापा जी की शादी मेरी माताराम श्री मति सावित्री पिता स्वर्गीय श्री सभा चंद जी श्रीवास्तव से हुई | मेरे नाना जी लखनादोन के पास एक छोटे कसबे सिहोरा में रहते थे | सिहोरा ही मम्मी जी की जन्म भूमि थी और शादी होने के पहले ११ वी तक की पढ़ाई वहीँ हुई | मम्मी जी अपने भाई बहनों में सबसे छोटी है, उनकी एक बड़ी बहन और एक भइया है | नानी की सूरत तो मम्मी जी को भी नही याद, जब मम्मी २ साल की थी तभी उनकी मम्मी को भगवान ने बुला लिया था | उनके दादा जी की देख रेख में ही वो बड़ी हुई |

१९७७ भइया का जन्म हुआ फिर १९७९ में मेरा और १९८० में मेरे छोटे भाई कपिल का , हम तीनो ही चचाई में पैदा हुए थे | मेरे बचपन की यादे तो नही है चचाई की पर बहुत सारी तस्वीरे है, जो मेरे चाचा जी लोग खीचते रहते थे, मम्मी जी बताती है की बचपन में मैं बड़ा गोलू मटोलू था |

१९८१ में पापा जी का ट्रान्सफर नरसिहपुर हो गया और हम सब नरसिहपुर आ गए | यहीं मेने पहली से चोथी तक का स्कूल पढ़ा , सरस्वती शिशु मन्दिर में, भइया मुझसे २ क्लास आगे था और कपिल २ क्लास पीछे | १९८६ में पापा जी का ट्रान्सफर उज्जैन हो गया और १९९१ में देवास की एक तहसील कन्नोद | मेने ५वी से ७वी
तक उज्जैन और ८वी से ११वी तक कन्नोद में पढ़ी | उज्जैन में मेरे स्कूल का नाम मेघदूत और कन्नोद में नितिन फ्लोवर (८वी ), आदर्श शिशु मन्दिर (९वी - ११वी ) था | १९९५ में हम लोग पापाजी के ट्रान्सफर के साथ ही वापस नरसिहपुर पहुँच गए | १९९३ के आखिर में दादा जी के निधन के बाद पापा जी घर (लोलरी ) के करीब ही रहना चाहते थे, इसी वजह से उन्होंने नरसिहपुर आकर यहीं बसने का इरादा कर लिया था |


१९९६ में नरसिहपुर में ही हमारा घर बन ना शुरू ही हुआ था और जनवरी में ही दादी जी का स्वर्ग वास हो गया | पापा जी चाहते थे की नरसिहपुर में घर बन जाने के बाद दादी जी हमलोगों के साथ ही रहेगी पर ..........| नरसिहपुर में मेने १२वी और बी एस सी का पहला और दूसरा साल पास किया और टेक्नीकल होने के लिए केमोर चला गया, जहाँ मेरी बुआ जी रहती है और फूफा जी ने ही मुझे टेक्नीकल के लिए सलाह और दाखिला दिलवाया | बुआ जी २ बेटे और २ बेटिया है जो की मेरी ही उमर के हैं, बुआ जी का छोटा बेटा संजू मेरे ही साथ पढ़ रहा था | १९९८ से २००१ तक केमोर में पढ़ा | यहीं मेने बी एस सी का फाइनल भी किया | २००१ जुलाई में इंस्टी टुशनल पढ़ाई ख़तम हो जाने के बाद १ साल के लिए मैं और संजू लखेरी (राजस्थान कोटा ) गए |
२००२ में मेने जे पी सीमेंट ज्वाइन करके अयोध्या के पास टांडा में कुछ दिन जॉब किया पर मेरा वहां मन नही लगा और में वहां से आ गया, करीब दो महीने घर में रहने के बाद मार्च २००३ में जॉब की तलाश में देल्ही चला गया, देल्ही की ही पास नॉएडा में मेरे चाचा जी रहते है, उन्ही के पास रुक कर में जॉब की तलाश में लग गया | किस्मत का धनि होने के चलते मुझे मेरी फील्ड के एक अच्छे मने जाने वाले यंत्र जिसे पी एल सी (PLC) कहते है पर काम करने का मोका मिला, जबकी मुझे इसके बारे में कुछ जयादा नही पता था | २००३ से २००७ तक मेने तीन कम्पनियों के लिए काम किया और नवम्बर २००७ में एक दूसरी कम्पनी ज्वाइन करके मलेसिया पहुँच गया, हा २००७ में मेरी शादी की बात शुरू हो गई थी और अब मेरी सगाई भी हो चुकी थी |

मेरी जीवन संगिनी रागिनी जबलपुर की रहने वाली है, जो की मेरे शहर से ९० किलोमीटर की दूरी पर है| पैदाइश से लेकर शादी तक रागिनी जबलपुर में ही रही और जिओलोजीय से मास्टर डिग्री हासिल की | रागिनी के एक बड़े भइया और एक बड़ी बहन है और पापा जी श्री रवि श्रीवास्तव जबलपुर व्हीकल फैक्ट्री में कार्य रत है, और मम्मी श्री मति राजकुमारी श्रीवास्तव पास के ही एक गाँव भोवरा से है | मेरे ससुर जी को उनके स्वर्गीय पिताजी ने कहा था की " बंधी मुट्टी लाख की और खुल गई तो खाख की " और इसी से प्रेरित होकर वो लोग इस छोटे परिवार वाले ज़माने में भी सब साथ रहते है | रागिनी के मायके में रागिनी के पापा जी, बड़े पापा जी , चाचा जी और एक बुआजी अपने अपने परिवार के साथ , रागिनी की दादी जी के साथ ही रहते है|
फ़रवरी २००८ में मेरी शादी हुई और मई में रागिनी भी मलेसिया आ गई | इस साल (२००९ ) के अंत तक में इंडिया वापस जाने का सोच रहा हूँ, और देल्ही में ही रह कर अपने काम को आगे करूंगा |

अभी तक मेने सिर्फ़ मेरे बारे में ही लिखा, पर जिन बातो को लिखने के लिए मेने ये ब्लॉग बनाया है वो अभी तक यहाँ नही है, पर एक एक टोपिक करके अब उन्हें लिखने की कोशिश करूंगा |

अभी जारी है .................